मानव
शरीर रोज अनेको विषाणुओं से संपर्क में आता है | परन्तु हमारा शरीर प्रतिरक्षा
तंत्र द्वारा इन रोगाणुओं को नष्ट कर देता है | शरीर की इस क्षमता को ही प्रतिरोधक
क्षमता कहते है |
जब हमारा
प्रतिरक्षा तंत्र इन रोगाणुओं को नष्ट नहीं कर पाता है | तो हम बीमार पड
जाते है |
मानव
शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र व प्रतिजन आदि के बारे में अध्ययन को प्रतिरक्षा
विज्ञान कहा जाता है |
मानव
शरीर में दो प्रकार की प्रतिरक्षा विधियाँ पाई जाती है |
स्वभाविक प्रतिरक्षा विधि :-
यह
जन्मजात प्रतिरक्षा विधि है | जिसे प्राकृतिक प्रतिरक्षा भी कहा जाता है | इसे
सामान्य प्रतिरक्षा भी कहा जाता है | क्योंकि यह किसी ख़ास रोगाणु के लिए क्रिया नहीं करती
| बल्कि यह सभी रोगाणुओं पर समान रूप से कार्य करती है |
इस प्रतिरक्षा में निम्न कारक सहायक होते है :-
भौतिक
अवरोधक :- जैसे
त्वचा, नासिका छिद्रों तथा अन्य अंगों में पाएं जाने वाले पक्ष्माभ व कशाभ,
श्लेष्म उपकला आदि |
रासायनिक
अवरोधक :- जैसे
आमाशय में पाए जाने वाले अम्ल, आमाशय व योनि का अम्लीय वातावरण, त्वचा पर पाए जाने
वाले रासायनिक तत्व, विभिन्न देह तरलों में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व जैसे :-
लार, अश्रु आदि |
कोशिका
अवरोधक :-
भक्षकाणु क्रिया में सक्षम कोशिकाएं जैसे मेक्रोफेज, मोनोसाईट, आदि |
ज्वर तथा
सूजन आदि |
उपार्जित
प्रतिरक्षा विधि :-
यह
अनुकूली अथवा विशिष्ट प्रतिरक्षा भी कहलाती है | इस प्रकार की प्रतिरक्षा में एक
पोषक किसी एक बाह्य या सुक्ष्म जीवी को नष्ट करने का कार्य करता है | इस प्रक्रिया
में प्रतिरक्षियों का निर्माण किया जाता है | इन अभिक्रियाओं के कारण कोशिका
मध्यित प्रतिरक्षा (Cell Mediated immunity ) सक्रिय होती है |
विशिष्ट प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है :-
सक्रिय
प्रतिरक्षा :- ऐसी
प्रतिरक्षा जिसमे शरीर स्वयं ही प्रतिजन के विरुद्ध प्रतिरक्षियों का निर्माण करता
है |
निष्क्रिय
प्रतिरक्षा :- इसमें
शरीर में विशिष्ट प्रतिरक्षी प्रविष्ट करवाए जाते है |
जैसे :-
टिटेनस के टीके |
प्रतिजन :-
प्रतिजन
वे बाहरी रोगाणु होते है जो शरीर में आकर बी-लसिका कोशिका को प्रतिरक्षी
उत्पादक प्लाज्मा कोशिकाओ में रूपांतरित कर प्रतिरक्षी उत्पादन के लिए
प्रेरित करते है | तथा उसी प्रतिरक्षी से क्रिया करते है |
सामान्य
रूप से इनका आंविक भार 6000 डॉल्टन अथवा उससे ज्यादा होता है | ये विभिन्न रासायनिक
संगठनों का होता है | जैसे :- प्रोटीन, लिपिड तथा न्यूक्लिक अम्ल आदि |
कभी कभी
शरीर के अन्दर भी प्रतिजन बन जाते है | जैसे :- कैंसर आदि |
जब
प्रतिजन हमारे शरीर में आता है तो उसका सामना सर्वप्रथम स्वभाविक प्रतिरक्षियों से
होता है | इसके बाद प्रतिजन विशिष्ट प्रतिरक्षियों से मिलकर प्रतिक्रिया करते है |
सामान्यतया प्रोटीन के अलावा और रासायनिक तत्व भी प्रतिजन के साथ कार्यं कर सकते
है | परन्तु वे इतने सक्रिय नहीं होते है |
प्रतिजन
सम्पूर्ण अणु के रूप में प्रतिरक्षियों से क्रिया नहीं करता वरन इसके कुछ विशेष
अंग ही कार्य करते है | इन अंगों को एंटीजन निर्धारक कहते है |
प्रोटीन
में करीब 6-8 एमीनो अम्लो की श्रृंखला कार्य करती है | एक प्रोटीन में कई एंटीजन निर्धारक होते
है | इनकी संख्या को एंटीजन की संयोजकता कहा जाता है |
प्रतिरक्षी :-
प्रतिरक्षी
को इम्यूनोग्लोबिन (Ig) भी कहा जाता है | ये प्लाज्मा कोशिकाओं
द्वरा निर्मित गामा ग्लोबुलिन प्रोटीन है | यह प्राणियों के रक्त में पाया
जाता है |
प्रतिरक्षी
का वह भाग जो प्रतिजन से क्रिया करता है उसे पैराटोप कहा जाता हैं |
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